27 मई, 2019

अपने-अपने मायने

                                        

एक कप चाय से शुरू होती उसकी सुबह, रात को एक गिलास दूध पर ख़त्म हो जाती है। चारु सोचती है की ऊपर वाले ने पेट तो सबको दिया है पर, किचन सिर्फ औरतों के लिए बनाया है। खैर, चारु को अपनी ज़िंदगी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। वह खुश है। घड़ी के काँटों के बीच वह खुद के लिए वक़्त निकाल लेती है। ललिता,रूबी और रेने उसकी सहेलियाँ  हैं। महीने में कोई एक दिन उनका आपस में मिलना, गप्पें  मारना या मूवी  देखने का कार्यक्रम बन जाता है। मॉडर्न सोसाइटी में इसे किटी -पार्टी करना कहते हैं। और आज चारु का नंबर है। उसने अपने सभी सहेलियों को घर पर ही बुलाया है। अहमदाबाद में अप्रैल की धूप ने जून महीने की तपिश याद दिला दी है। मौसम का खौलता मिज़ाज देख कर चारु ने घर पर ही खाने- पीने का कार्यक्रम रखा है। 
                                                पांच-छ: लोगो का खाना बनाने के लिए चारु ने सोसाइटी की ही कुक, लम्हा को रख लिया है।  ३०-३२ वर्ष की लम्हा अपने काम में माहिर है। ८-१० लोगो की छोटी-मोटी पार्टी में लम्हा खाना बनाने में निपुण है। चारु की सोसाइटी में लम्हा की गिनती अच्छी कुक में होती है। 
                                                        ९ बजे मनीष ऑफिस के लिए निकल ही रहे थे की लम्हा आगयी। उसने बोला -"दीदी आप मेनु बता दो तो मैं तैयारी शुरू कर दूँ।" 
चारु-"बहुत कुछ नहीं बनाना। चार बजे मेरी सहेलियाँ आजायेगी। छोले -भटूरे बना दो। रायता और सूप बना देना। बाकि अगर टाइम मिले तो जो आसानी से बने एक आइटम और कर देना। वैसे कोल्ड-ड्रिंक्स और आइस-क्रीम है।"
लम्हा- "जी दीदी" . 
                               लम्हा को किचन का काम समझा कर चारु घर का बाकि काम निबटने लगी। बीच-बीच में वह जा कर लम्हा की भी मदद कर देती थी। चार बजते ही उसकी मित्र मण्डली उसके घर आ पहुंची। सब के आते ही लम्हा तीन रंग से भरे कोल्ड-ड्रिंक्स की ट्रे लिए हाजिर होगयी। सबके हाथ में गिलास था और पेट में बहुत सारी बातें। विद्वानों ने कहा है कि औरतों की सब मर्ज़ की एक दवा है- गप्पें लड़ाना। 
चारु ने बोला -" दो दिन बाद अक्ष्य तृतीया है।  क्या ले रही हो तुम लोग?" 
ललिता ने सबसे पहले बोला-"यार, सोने का भाव हर साल बढ़ता है। इस बार तो मैंने सोने की गिन्नी लेने का सोचा है। इन्वेस्टमेंट के लिए।"
रूबी-"गिन्नी? मैं तो गहने ही लूँगी। वह आजकल फैशन में है न बड़ी-बड़ी अंगूठी जैसा आलिया भट्ट ने कलंक फिल्म में पहना है। वैसी वाली।"
रेने-" हमारे ग्रुप में अगर कोई फ़िल्मी है तो वह है हमारी रूबी मैडम और अगर किसी का बिज़नेस माइंड  है तो वह है ललिता का। मैंने भी गहने लेने का ही सोचा है। इस बार हीरे की नाक की लौंग लूँ? कैसा आईडिया है? सी.जी रोड चले क्या?"
चारु-"तुम लोग चले जाना। मैंने कल रात जब मनीष से अक्ष्य तृतीया पर कुछ खरीदने की बात की तो भड़क उठे। बोलते हैं कि-तुम औरतों को तो गहने खरीदने का बहाना चाहिए। एक तो मार्च क्लोजिंग का टेंशन फिर इनकम-टैक्स का चक्कर। ऊपर से इन तीज-त्यौहारों का आना बंद नहीं होता।" चारु ने ऐसे मुँह बना-बना कर बोला की सब की हँसी निकल गई।  रेने अपनी हँसी रोकते हुए बोली-"यार मनीष भाई न एक दम कॉमेडी है।"  लम्हा इन सब की बातें सुन रही थी। हाथ उसके मशीन से चल रहे थे और दिमाग में उसकी बेटी की तस्वीर बन-मिट रही थी। टेबल पर खाना परोसने के बाद उसने चारु को पुकारा-"दीदी, एक बार आना।" चारु को अपनी व्यवस्था दिखाने के बाद उसकी प्रतिक्रिया जाने के लिए वह उसका चेहरा ध्यान से देख रही थी। चारु लम्हा के काम से बहुत खुश हुई। टेबल की सजावट देख सब ने लम्हा की तारीफ की। 
रूबी-"सच में लम्हा,तुम खाना बहुत स्वादिष्ट  बनाती हो। खाते ही मजा आ जाता है।" भटुरे का एक बड़ा निवाला मुँह में डालते हुए ललिता ने बोला -"लम्हा के हाथ में स्वाद है।"
सभी आनंद ले कर उसके बनाये खाने का लुफ़्त उठाने लगे। खाने की मेज पर एक बार फिर से शॉपिंग वाला टॉपिक आगया। चारु ने अचानक लम्हा से पूछ लिया-" लम्हा, तुम अक्ष्य तृतीया जानती हो? कुछ लेती हो उस दिन?"
                                     रेने को उम्मीद नहीं थी कि कोई लम्हा से,एक खाना बनाने वाली से गहने खरीदने के बारे में पूछेगा। पर, उसे चारु का व्यवहार पता है। वह हर किसी को बराबर का दर्जा देती है। हमारे घर में कामवाली के खाने-पीने का अगल बर्तन होता है। पर, चारु इन भेदभाव के विरुद्ध  है। चारु एक ही जात को नीच मानती है;जो चोरी का खाते  है।  बाकि सभी जाती उसके लिए बराबर है।  
लम्हा भी चारु द्वारा पूछे सवाल के लिए तैयार नहीं थी। उसकी गिलास में ऑरेंज जूस डालते हुए बोली-" अब चारु दीदी, आपसे क्या छिपाना।  हम रोज कमाने-खाने वाले लोग है। मैं इतनी मेहनत करती हूँ ताकि अपनी बेटी श्रेया को पढ़ा-लिखा कर कुछ काबिल बना सकूँ।" जूस का जग टेबल पर रखा कर वह अपना हाथ आँचल से  पोछते हुए आगे बोली-"दीदी अक्ष्य तृतीया के दिन या तो लोग सोना खरीदते है या किसी व्यपार का शुभारंभ करते है। क्योंकि अक्ष्य का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो, मतलब जो कभी खतम न हो। श्रेया की पढ़ाई आगे भी चालू रखने के लिए मैंने पिछले साल आज के दिन ही बैंक खाता खुलवाया था जिसमे मैं और मेरे पति हर महीने पैसे जमा करते हैं। बेटी की पढ़ाई पैसों के कारण नहीं रुकनी चाहिए। रही कुछ खरीदने की बात तो बेटी की पसंद की कोई किताब या उसकी जरूरत की कोई चीज़ खरीद लेती हूँ। अब अपनी-अपनी मान्यता है दीदी।" 
             अपनी बात ख़त्म कर लम्हा ने भोलेपन से उन चारों सहेलियों को देखा। फिर हरबड़ाहट में बोला-"अरे! देखो।  बात करने के चक्कर में राइता लाना भूल ही गयी। "
लम्हा की बातें वह चारों आँखें फाड़े और मुँह खोले सुन रही थी। जब वह राइता ले वापस आयी तो चारु ने उसका हाथ प्यार से पकड़ा और बोला-"असल में अक्ष्य तृतीया का पर्व तो तुम बनती हो। देखना, आज के दिन जिस तरह श्री कृष्ण ने सुदामा की कुटिया को महल में बदल दिया था, वैसे ही तुम्हारी बेटी तुम्हारे दिन बदल देगी।"
        लम्हा की आँखों में अपनी बेटी श्रेया का सुनहरा भविष्य चमक उठा। उस चमक के आगे हीरे की लौंग की भी चमक फीकी लगी।
                                                                                                                                                                                                                                                                           








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