18 मार्च, 2010

इंग्लिश का भूत

आँखे बंद है। अंधरे कमरे से आवाज़ आ रही है - "...कैरियर बनाना है तो इंग्लिश सीखो ...,...छे महीने में फर्राटेदार अग्रेजी सीखे..."। मोबाइल पर मेसेज टोने बजता है। अचानक राज की नींद टूटती है। देखा घडी में सात बजने वाले थे। वह मेसेज देखता है । मोबाइल कंपनी की ओरसे मेसेज था जो हिंदी दिवस पर फ्री शेरो-शाएरी मेसेज पैक देने की बात कर रहा था । कैलंडर की तरफ देखता है तो आज १४ सितम्बर है। जल्दी से उठता है और तैयार हो कर घर से निकलता है।

रस्ते में एक दुकान पर चाये पिने रुकता है। कुछ लड़के इंग्लिश में बाते कर रहे है...

"यार इट्स वैरी इम्पोर्टेन्ट टू लेअर्ण इंग्लिश..."

..."एस यू आर राईट। एवेरी जॉब डिमांड इंग्लिश स्पेअकिंग बॉय..."

राज चाये पीते हुए उनकी बाते सुनता है ओर चल देता है। वह एक बिल्डिंग के अन्दर जाता है जिस के ऊपर लिखा है...छे महीने में अग्रेजी बोलना सीखे।

क्लास के अन्दर- राज बेठा हुआ है , सर इंग्लिश बोलने की क्लास ले रहे है और इंग्लिश की महत्वता को बता रहे है..."टू लीव इन थिस वर्ल्ड यू मस्ट लेअर्ण थिस लैंग्वेज "। तभी एक स्टुडेंट बोलता है - " हम को तो इंग्लिश सिखने का है। अपनी इज्ज़त बढ़ेगी और आगे नौकरी भी मिलेगी..."। राज सोचने लगता है - "इनकी हिंदी कितनी ख़राब है। इन लोगो को तो हिंदी के व्याकरण के बारे में तो कुछ भी नहीं पता...हमारे शहर में इंग्लिश सिखाने वाले तो बहुत है पर हिंदी ठीक से बोलने वाले बहुत कम..."

घंटी बजती है और वह क्लास से बहार निकल जाता है। घर जाने के रस्ते में वह देखता है की सभी दुकानों पर इंग्लिश में नाम लिखे हुए है , लडको ने इंग्लिश में छापी टी-शर्ट पहन रखी है...उस हर तरफ इंग्लिश का ही बोलबाला देखाई दे रहा है। वह सोचता है की " हिंदुस्तान से हिंदी गायब हो रही है.... " (पीछे से गाने की आवाज़ आ रही है , "हिंदी है हम;हिंदुस्तान हमारा, हमारा....")

राज घर के पास पहुचता है। कुछ बच्चे खेल रहे है। एक बच्चा दूसरे बच्चे से बोलता है - "तुमने मेरा शर्ट फाड़ा है"।

"मैंने नहीं फदी है..."

तुम झूठ बोलते हो। अगर तुमने नहीं किया तो क्या मैंने किया?"

....राज बच्चो की बाते सुन रहा था। उसने दोनों को अपने पास बुलाया और बोला - "खेल-खेल में यह सब होता है। तुम लोग इतने अच्छे स्कूल में पड़ते हो फिर भी तुम लोगो को हिंदी ग्रामर नहीं आता है..."

एक बच्चा बोलता है-" भैया हम लोग हिंदी ग्रामर सिर्फ एक्साम टाइम पड़ते है इस में तो बस पास करना होता है..."

राज बोलता है-" ठीक है। मुझे पता है स्कूल में हिंदी को कितना महत्व दिया जाता है। मेरे उम्र के लड़के गलत भाषा बोलते है। आजकल तो बस सब को इंग्लिश सीखना है। तुम लोग मुझे ये बतायो की अगर मैं तुम लोगो को हिंदी ग्रामर सिखायु तो सीखोगे?"

एक बच्चा-" एस आई विल, लेकिन फिर आपको हम लोगो को किसी लेखक की कहानी सुनानी पड़ेगी। हमारे किताब में हिंदी लेखक की कहानी सिर्फ पाच- छे ही है"।

राज मुस्कुराने लगता है और सोचता है, हिंदुस्तान से अभी हिंदी पूरी तरह नहीं गया है।

(पीछे से गाने की आवाज़ आ रही है...हिंदी है हम हिंदुस्तान हमारा,हमारा.....)

12 मार्च, 2010

लेकिन यहाँ भी दोनों एक - दूसरेको अपना ग़रूर ही सौपते है.

05 मार्च, 2010

बलात्कार शरीर का नहीं होता.

८ मार्च को हम महिला दिवस मानते है। इस दिन के बारे में कहाजाता है किइस दिन को हम समाज में उनको उनके हक और सामान दे ने का निश्चय करते है...औरत कि इज्जत को पांच मीटर कि साड़ी में लपेटने वाले जब लोग इनके मान-सम्मान कि बात करते है टी आत्मा तड़पती है। मेरे अन्दर कि औरत रोने लगती है। क्या हम लड़कियों कि इज्जत दुपट्टे और साड़ी में लिपटी होती है जिसे जब चाहे कोई भी राह चलता हमारे तन से अलग करदे? क्या हमारी इज्जत कि इतनी ही औकात है कि हवा का तेज छोका भी उसे हिला ने?


समझ नहीं पाईआज तक कि वास्तव में बलात्कार किस का होता है? शरीर का,आत्मा का या औरत के आत्म-सम्मान का? मैं नहीं मानती कि बलात्कार शरीर का होता है। वास्तव में यह तो एक माध्यम है अपनी हवस मिटाने का और किसी के आत्म-सम्मान को रौदने का। एक औरत जब किसी मर्द को अपना तन सौपतीहै तो हकीकत में वह उसे अपना आत्म-सम्मान सौपती है। शरीर तो एक माध्यम होता है यह साबित करने के लिए कि हाँ,मुझे तुम विश्वास है"। आजकल तो गे और लिस्बियन का चलन जायज होगया है।

आइना नहीं रहा किसी का चेहरा.

चेहरे पर चेहरा, उस पर भी दूसरा चेहरा। न जाने और कितनी परतो से ढकरखा है, आदमी ने अपना असली चेहरा। एक शख्स के चेहरे अनेक। हर मोके के लिए इस के पास एक नया चेहरा है। कौन जाने,कौन है यह,क्या है यह रहस्य?पहले कभी शौक हुआ करती थी,किसे के रोटी कमाने का जरिया थी...आज आदत है,मज़बूरी है हर किसी को चेहरे बदल लेने की। आदमी को ऐसाकरने में अब कोई डर,संकोच,शर्म नहीं आती। हर पल झूट बोलता और लम्हे अपनी असलियत छुपता आन्द्मी जानता है तो मौके को देख कर अपना चेहरा बदल लेना का हुनर।
मैं भी इसी जात की हूमैं भी तो आदमी हू। नफरत है मुझे खुद से और चाहकर भी खुद को बदल नहीं सकती। मैंने भी कई चेहरे ओढ़ रहे है.हर मौके के लिए,हर शख्स और हर वक़्त के लिए मेरे पास भी है एक नया चेहरा। मैंने भी सिख लिया है चेहरा बदलना.पहले आसन नहीं लगता था,घिन्न आती थी पर, अब यही मेरी जिंदिगी है। अपना सब कुछ लुटा देने के बाद सिखा है इस जीवन को जीना...ऊपर-ऊपर हँसलेना,अन्दर-अन्दर रो लेना।