06 अप्रैल, 2017

राम नहीं, रावण भी नही.... चाहिए तो सिर्फ विभीषण !!!

मेरे अंदर राम नहीँ। मेरे अंदर रावण भी नहीं है। अगर कोई है तो सिर्फ विभीषण  है। चौकाने की कोई बात नही है। राम को कभी मैंने भगवान् माना ही नही। राम की मर्यादापुर्षोत्तम वाली छवि कभी मेरे मन-मंदिर में आयी ही नहीं। जब संबंधों की समझ नही थी तब भी कभी मैंने राम को नही पूजा। अब तो स्त्री-पुरूष की देह से लेकर आत्मा तक के रिश्ते को जानती हूँ। ऐसे में पत्नी से अग्निपरीक्षा  दिलाने वाले पति को कैसे पूजती ?
           हाँ , मेरे अंदर विभीषण रहता है। और कोई भी युग क्यों न हो; राम-रावण बनना आसान है पर, विभीषण को जीना बेहद मुश्किल है। राम अच्छाई के लिए लड़े। रावण अपने अहंकार के लिए लड़ा। परन्तु, विभीषण सच के लिए लड़े। युद्ध भूमि में शत्रु को मारने के लिए हिम्मत चाहिए। पर, उसी युद्ध भूमि में अपने को मारने के लिए बहुत बड़ा कालेजा और दिल  की ईमानदारी चाहिए। 
                          लोग कहते है कि " कैकई जैसी माता और विभीषण जैसा भाई भगवान् किसी को न दे"। क्यों? क्योंकि विभीषण ने रावण का भेद उसके शत्रु राम को बतलाया था। आपने तो वह मुहावरा सूना ही होगा "घर का भेदी लंका ढाये"।  तुलसी हो या रहीम हो किसी की कृति में विभीषण को सम्मान नही मिला... कम-से-कम मैंने तो  नही पढ़ा आजतक।  धर्म की किताब पढ़ने वालो ने सिर्फ राम की जीत देखी ; रावण का नाश देखा; सीता का वनवास देखा... नही देख पाए तो विभीषण का त्याग-उसकी हिम्मत।  रामानंद सागर की रामायण मैंने नही देखी। २००८-२००९ साल ठीक से याद नही, उस वक़्त  NDTV Imagine पर रामायण सीरियल आता था।  वह देखा था मैंने। इस सीरियल की पटकथा पहले वाले रामायण सी ही थी पर, इसका दृष्टिकोण नया था।  फिर  अभी कुछ महीनो पहले तक स्टार प्लस पर "सिया के राम" आता था।  वह भी देखा है मैंने।विभीषण का भाई प्रेम देखा। अपनी भाभी के प्रति उनका सम्मान देखा। और जो मेरी समझ में आया वह थी सच के प्रति उनकी निष्ठां।  
                                              हम  सब के अंदर बसे  रांम-रावण को कुछ न कुछ चाहिए। किसी को प्यार,किसी को घर-द्वार, किसी को देह, किसी को भोग-विलास।  परन्तु, सच किसी को नही चाहिए।  क्योंकि किसी के अंदर विभीषण  नही है।  मुझे लगता है कि भगवान् या  शैतान बनना आसान है पर, इंसान बने रहना मुश्किल है। तभी शायद आज कल हर तरफ इतना कोलाहल है..... 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत खूब शिल्पा...मुझे पता ही नही था की तुम इतना अच्छा लिखती हो।

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