21 अक्तूबर, 2018

चिठ्ठी आयी है...

                                                                चिठ्ठी आयी है...

लम्हा ट्रैन में बैठ चुकी थी। उसने बहुत जोर से अपनी माँ, अंजलि का हाथ पकड़ रखा था। २१ साल की लम्हा ph.d करने मुंबई जा रही थी। ट्रैन की सिटी बजी और न चाहते हुए भी अंजलि ने अपना हाथ लम्हा से छुड़ा लिया। अंजलि ट्रैन से उतर गयी। खिड़की से सट कर बैठी लम्हा की आंसू  रुक नहीं रहे थे। धीरे-धीरे ट्रैन आगे बढ़ती  गयी और सब पीछे छूटता चला गया। उसका शहर, उसके दोस्त,उसकी माँ, सब कुछ स्टेशन की तरह वहीं रह गया और वह रेल की पटरी सी आगे बढ़ती चली गयी। कितनी अजीब बात है की जिस सपने को वह पूरा करने जा रही है उसे उसकी कीमत आज पता  चली  है। लम्हा की सिसकी धीरे-धीर कम होने लगी। ट्रैन की खिड़की के आगे का मंजर तेजी से बदल रहा था और उसकी सोच भी विस्तार ले रही थी।
                      अचानक लम्हा को "पोलो" खाने का मन हुआ। हमेशा से ही उसकी पसंदीदा टॉफी पोलो रही  है। परीक्षा के वक़्त, उसका हाथ और दिमाग दोनों तेज चले इसलिए वह अपने दो पेन के साथ पोलो को एग्जाम-हॉल में जरूर ले जाती थी। उसके दोस्त उसे चिढ़ाते थे कि लम्हा के अच्छे मार्क्स का राज उसका लकी चॉकलेट पोलो है। कॉलेज की याद उसे कभी उदास नहीं करती थी। बल्कि उसमें ऊर्जा की सुई भर देती थी। अपनों के हाथ  छोड़ने का गम तो उसे भी था पर, पोलो की ठंडक और कॉलेज की याद ने उसे उसका सपना, ph.d करने का सपना वापस याद दिला दिया था। कुछ पढ़ने के लिए उसने अपना बैग-पैक खोला। बैग के अंदर से उसने मैगज़ीन निकली। उसको पढ़ने के लिए खोला तो एक सफ़ेद रंग का लिफ़ाफ़ा किताब से सरसराता  हुआ उसकी गोदी में आ गिरा। वह उस लिफ़ाफ़े को देख कर चौंक गयी क्यूँकि उस पर "मम्मी" लिखा था। उसने उसे खोला तो अंजलि का पत्र था, उसके नाम। लम्हा को हसीं आगयी की आजकल पत्र लिखता कौन है। उसने सोचा की माँ उसको अपने हाथ से भी तो दे सकती थी। उसे गाँधी जी वाली वह घटना याद आयी जब उन्होंने अपनी गलती की माफ़ी मांगने के लिए अपने पिता जी को पत्र लिखा था। पता नहीं क्यों पर, लम्हा को बहुत रोमांच महसूस हो रहा था। उसने झट से सलीके से मोड़े हुए काग़ज़ को खोला और पढ़ना शुरू  किया...
                                          "मेरी बहादुर बेटी,पत्र पा कर तुम आश्चर्य में हो। क्या करुँ, जो बात मुझे तुमसे आमने-सामने बैठ कर करनी चाहिए वह बातें मुझे लिखनी पढ़ रही है। इसका कारण है मेरा संचोक। आखिर हूँ तो औरत ही। हाँ, मैं-तुम औरत है। तुम्हें लड़की से सीधा औरत बना दिया, मैंने आज अपनी लाडली को बड़ा जो कर दिया है।
             "लम्हा, अब तक की तुम्हारी जिंदिगी में मैं तुम्हारे साथ हर पल थी। आगे भी रहूँगी। पर, अब तुम बड़े शहर में अकेली अपने सपनों का पीछा करोगी। मुझे तुम पर गर्व है। लेकिन, एक बात हमेशा याद रखना, कल को चाहे जो हो अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने से पीछे मत हटना। लड़की हो, लोग किसी न किसी बहाने तुम्हे छूने का, सूंघने का प्रयास करेंगे। तुम विवेक और हिम्मत से काम लेना।  वह लड़की चाहिए निर्भया हो, लक्ष्मी हो, या तुम हो या मैं हूँ, याद रखना हम औरतों की इज्जत पाँच मीटर की साड़ी से कही ज्यादा है।  हमारी आबरू इतनी हलकी नहीं की राह चलता मनचला अगर  इसे छू  दे तो यह मैला हो जाये  और न ही इतनी भरी है कि  हमारी एक गलती से  पूरी खानदान की नाक ही कट जाये।
                               "बेटी, तुम जिस क्षेत्र में हो वहां कई प्रकार के लोग मिलेंगे। और सिर्फ तुम्हारा ही क्षेत्र क्यों हो। कोई भी जॉब या शहर में हर तरह के लोग मिलेंगे। साधू भी और शैतान भी। तुम देखना, अपनी छः इन्द्रियों को खुला रखना। और अगर, खुदा न करे कभी तुमसे इंसान पहचानने में भूल हो जाये तो अपनी इस एक गलती की सजा अपने आप को उम्रभर मत देना।
                                    "पता है, जब भी मैं कोई बलात्कार की घटना को पढ़ती हूँ तो मेरा मन-दिमाग उस शैतान को देखना चाहता है जिसने यह घिनौना पाप किया है।  लेकिन अफ़सोस, हर तरफ सिर्फ पीड़िता के ही चर्चे होते है। मैं एक औरत होने के साथ एक लड़की की माँ भी हूँ। इसलिए कहती हूँ कि लम्हा, तुम अपने आत्मविश्वास को कभी अपने कपड़ो की लम्बाई से मत नापना। तुम्हारा आत्मबल, तुम्हारे बालो की बनावट के गुलाम नहीं होने चाहिए। समाज की बेतुकी सजावट से कही ज्यादा महत्वपूर्ण है तुम्हारा आत्मसम्मान।  इसे कभी भी-किसी के लिए भी मत झुकाने देना।
                               "मेरा बच्चा , तुम्हे मौका मिला है उड़ने का। तुम्हारे पंख काटने को बहुत लोग है। पर, तुम उड़ोगी, मुझे विश्वास है। गलती करने से बचना। अगर गलती हो जाये तो उससे सिख लेना। नई शुरुआत  करना। पर, किसी भी परिस्थिति में खुद को लाचार, बेसहारा मत समझना। अंत में मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि तुम अपनी सोच को "समाज क्या सोचेगा" से कभी मत बदलना।
                                    खुश रहो।

                                                                                                               तुम्हरी मम्मी ।    

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