17 सितंबर, 2010

waqt humare pass nahi hai

कितनी खामोश थी उसकी आँखें,
कितना कुछ कहना चाहती थी मेरी जुबां,
होठ हिलते, पर लब्ज न निकलते
हर बार कुछ कह कर भी कुछ न कह पते.
जाने कैसी थी वो बेबसी, कैसा दौर था वह भी;
था बहुत कुछ कहने-सुनने को पर,नहीं था तो वक़्त... .


सदियों बाद मिलें है हम,फिर बारिस कि बूंदों के साथ.
कभी भीगे थे साथ में हम,उसी वर्षा कि बूंदों से आज भी मेरी आत्मा भीगी है
एक सोंधी सी खुशबू अब तक बसीं है;
आज फिर बारिस ने हमें एक साथ भिगोया है,
वह गुजरा हुआ पल लौटाया है... .



मन तो अभी भी गिला-गिला सा है उसकी कोमल भावनायों से,
पर, है अब बहुत कुछ बदला-बदला सा.
कहना था मुझे बहुत कुछ,सुनना था उससे बहुत कुछ
पर वही बेबसी आज भी है, सब कुछ होते हुए भी 
बस वह वक़्त हमारे पास नहीं है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत से कोमल भावो को भरा हैँ आपने कविता मेँ। लाजबाव हैँ आपकी कविता। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो..........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

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  2. आप आपने ब्लोग पर काफी दिनोँ बाद उपस्थित हुई हैँ ना ? पुनः स्वागत हैँ आपका ।

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  3. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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