30 जुलाई, 2010

हम इंसान है!

हाथों की अनबुझी लकीरों में जकड़ा इंसान हमेशा अपने भविष्य को जानने की चाहत में उतावला रहता है। उस कल के बारे में सोचता है जिससे वह अनजान है। हम "कल क्या होगा " की फिक्र में "आज क्या करें" भूल जाते हैं। सदियाँ बीत गयी पर, हम आज भी बदले। हम भूत- भविष्य और इस ग्रह-नक्षत्र के चक्कर से कभी आजाद नहीं हो पायेगे। हीरा पहनो, भाग्य चमकेगा...मोती पहनो, मन शांत रहेगा...जाने क्या - क्या पहना और करना पड़ता है अपने को कामियाब बनाने के लिए।
मनुष्य अपनी गलतियों से सीखता है। जानवर भी अपनी गलतियों से सीखते हैं। लेकिन दोनों में फर्क है। जानवर अपनी गलती नहीं दुहराते, मनुष्य दुहराते हैं। जानवर आज में जीता है और हम कल में जीते हैं। हम या तो बीत चुके कल में जीते हैं या फिर आने वाले कल में जीते हैं। एक बात तो पक्की होती है किहम किसी भी हाल में आज में नहीं जीते।

2 टिप्‍पणियां:

  1. शिल्पा जी , आपने बहुत सही कहा , इस युग का इंसान वर्तमान मेँ जीना भूल गया है। वह भविष्य सुधारने के चक्कर मेँ ना तो वर्तमान मेँ सही से जी पा रहा है और ना ही भविष्य मेँ। सिर्फ तनाव मेँ जी रहा हैँ। बधाई! -: Visit my blog :- ( http://vishwaharibsr.blogspot.com )

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