05 मार्च, 2010

बलात्कार शरीर का नहीं होता.

८ मार्च को हम महिला दिवस मानते है। इस दिन के बारे में कहाजाता है किइस दिन को हम समाज में उनको उनके हक और सामान दे ने का निश्चय करते है...औरत कि इज्जत को पांच मीटर कि साड़ी में लपेटने वाले जब लोग इनके मान-सम्मान कि बात करते है टी आत्मा तड़पती है। मेरे अन्दर कि औरत रोने लगती है। क्या हम लड़कियों कि इज्जत दुपट्टे और साड़ी में लिपटी होती है जिसे जब चाहे कोई भी राह चलता हमारे तन से अलग करदे? क्या हमारी इज्जत कि इतनी ही औकात है कि हवा का तेज छोका भी उसे हिला ने?


समझ नहीं पाईआज तक कि वास्तव में बलात्कार किस का होता है? शरीर का,आत्मा का या औरत के आत्म-सम्मान का? मैं नहीं मानती कि बलात्कार शरीर का होता है। वास्तव में यह तो एक माध्यम है अपनी हवस मिटाने का और किसी के आत्म-सम्मान को रौदने का। एक औरत जब किसी मर्द को अपना तन सौपतीहै तो हकीकत में वह उसे अपना आत्म-सम्मान सौपती है। शरीर तो एक माध्यम होता है यह साबित करने के लिए कि हाँ,मुझे तुम विश्वास है"। आजकल तो गे और लिस्बियन का चलन जायज होगया है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. शिल्पा जी, जब किसी नारी का बलात्कार होता हैँ तो वो उसके आत्मसम्मान का बलात्कार हो रहा होता हैँ, जिससे उसका पूरा जीवन प्रभावित होता हैँ।

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  2. ji.aapse sahmat hun. cooment krne ke liye bahut bhaut shukriya.deri se shukariya kahne ke liye maaf kre.

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