05 मार्च, 2010

आइना नहीं रहा किसी का चेहरा.

चेहरे पर चेहरा, उस पर भी दूसरा चेहरा। न जाने और कितनी परतो से ढकरखा है, आदमी ने अपना असली चेहरा। एक शख्स के चेहरे अनेक। हर मोके के लिए इस के पास एक नया चेहरा है। कौन जाने,कौन है यह,क्या है यह रहस्य?पहले कभी शौक हुआ करती थी,किसे के रोटी कमाने का जरिया थी...आज आदत है,मज़बूरी है हर किसी को चेहरे बदल लेने की। आदमी को ऐसाकरने में अब कोई डर,संकोच,शर्म नहीं आती। हर पल झूट बोलता और लम्हे अपनी असलियत छुपता आन्द्मी जानता है तो मौके को देख कर अपना चेहरा बदल लेना का हुनर।
मैं भी इसी जात की हूमैं भी तो आदमी हू। नफरत है मुझे खुद से और चाहकर भी खुद को बदल नहीं सकती। मैंने भी कई चेहरे ओढ़ रहे है.हर मौके के लिए,हर शख्स और हर वक़्त के लिए मेरे पास भी है एक नया चेहरा। मैंने भी सिख लिया है चेहरा बदलना.पहले आसन नहीं लगता था,घिन्न आती थी पर, अब यही मेरी जिंदिगी है। अपना सब कुछ लुटा देने के बाद सिखा है इस जीवन को जीना...ऊपर-ऊपर हँसलेना,अन्दर-अन्दर रो लेना।

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