10 मार्च, 2025

कुछ नहीं!

 कुछ नहीं...

अकेली बैठी जब अपनी ही ख्यालों में गुम हो जाती हूँ और लोग पूछते है, "क्या सोच रही हो?" तब धीमी सी मुस्कान के साथ कह देती हूँ... कुछ नहीं. तुम, मेरे "कुछ नहीं" हो.

खाली समय हो या कामों का बोझ हो... अकेले जब खुद से बातें करती हूँ और लोग पूछते है, " कुछ कहा तुमने? " तब सकूचा कर कह देती हूँ... कुछ नहीं. तुम, मेरे "कुछ नहीं" हो.

भीड़ में या सुनी सड़को पर जब गुनगुनाती हुए खुद पर इतराती हूँ और लोग पूछते है, " क्यों शर्मा रही हो?" तब मैं धीरे से कह देती हूँ... कुछ नहीं. तुम, मेरे " कुछ नहीं" हो.

मेरे कुछ नहीं हो कर भी मेरी सारी भावनाएँ तुम्हारे आगे भीखर सी जाती है और तुम मेरे कुछ नहीं होते हुए भी उन सारी भावनाओं को समेट लेते हो. अच्छा है कि तुम मेरे कुछ नहीं हो... क्यों कि उम्मीद नहीं है तुमसे. तो, दर्द भी नहीं जुड़ेगा तुमसे.


09 मार्च, 2025

एक लड़का!

 तुम्हारे हँसने का जो तरीका है, 

वह जीने का सही सलिका है।

आंखे छोटी-सी कर लेते हो,

होठो को पूरा खुलने नहीं देते

यह सोच कर की हँसते हुए तुम्हारी शक्ल बिगड़ जाएगी।

 कभी तुम बच्चे-सा सकूचाते हो,

अपनी तारीफ़ सुन घबराते हो,

और कभी बिगड़े लड़के-सा लड़कप्पन दिखाते हो।

सबको हंसाने वाला खुद कितना रोता है, जानती हूँ

सच बोलूं तू तुझको दिल से अपना मानती हूँ।

होगा कोई फायदा तेरा, मेरे साथ रहने में ;

बस, तुम खो मत जाना औरों में।