22 जून, 2012

कई दिनों से कुछ नया नहीं   सोचा है . "सोच" कि बंजर भूमि पर कई दिनों से विचारों का अंकुर नहीं फूटा है . ठूंठ पर चुके मस्तिक में नयी अनुभूति की कोई कोपल नही फूटी है . सुना है  गिली मिट्टी पर नए पौधे जल्दी पनपते है . चर्चा या विचार-विमर्श की बारिश हो तो मेरी सोच की जमीं भी कुछ नम पड़े और मैं भी नया सृजन कर सकूँ . 

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