कैसे कहूँ की मैं जी रही हूँ
उड़ती चिड़िया के पंख
कमरे में कैद रह कर रोज गिनती हूँ
टीन की छत पर बारिश की
आवाज़ रोज सुनती हूँ
लेकिन कभी तन भीग नहीं पाता
मन का सूखापन सिर्फ बारिश की आवाज़ से हरा नहीं होता .
कैसे कहूँ की जी रही हूँ मैं।।
उड़ती चिड़िया के पंख
कमरे में कैद रह कर रोज गिनती हूँ
टीन की छत पर बारिश की
आवाज़ रोज सुनती हूँ
लेकिन कभी तन भीग नहीं पाता
मन का सूखापन सिर्फ बारिश की आवाज़ से हरा नहीं होता .
कैसे कहूँ की जी रही हूँ मैं।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें