आज खुद से खुद की जंग है।
परिवारिक रिश्तों को सँभालते हुए खुद को भी सँभालने की कोशिश जरी है।
किसी की बेटी हूँ, बीवी हूँ, माँ हूँ प्यारे से बेटे की, फिर भी लगता है कुछ नही हूँ।
"कोई नही" से "कुछ है" तक का सफ़र जरी है।
मेरी खुद से जंग जरी है।
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