मैं उड़ती हुई चिड़िया थी,
मुझे कैद किया गया।
कैद के अन्दर कोशिश कि...
और पंखो के संघर्ष की आवाज से तंग हो,
काट किये मेरे पर।
अब मैं सिर्फ आसमां को देखती हूँ,
नीले रंग के इस अनोखे जहाँ को तकती हूँ।
सब से ऊँचा उड़ना चाहती थी, औरों से आगे निकलना चाहती थी
छोटे से पंखो को फैला कर विशाल आसमां ढँक लेना चाहती थी...
अब बेबस हूँ क्यूंकि...मैं पर-कटी चिड़िया हूँ।
अच्छी अभीव्यक्ति ,,,सुन्दर शब्दों से सजी सुन्दर रचना !!!१ बधाई स्वीकारे ,,,शब्दों के इस सुहाने सफर में आज से हम भी शामिल हो रहे है ,,,,
जवाब देंहटाएंbahut bhaut shukriya.deri se shukariya kahne ke liye maaf kre.
हटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
bahut bhaut shukriya.deri se shukariya kahne ke liye maaf kre.
हटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति…………………दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंbahut bhaut shukriya.deri se shukariya kahne ke liye maaf kre.
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