आज किताब की अलमारी साफ़ करते हुए एक पुरानी सी डायरी दिखी। दिल की धड़कन इतनी तेज हो गयी की मैं उसकी आवाज़ साफ़ सुन सकती थी। दिमाग और दिल दोनों उस डायरी को खोलने से रोक रहे थे। पर, हाथों ने पीले पड़ चुके पन्ने को पलटना शुरू कर दिया और आँखों ने उसे पढ़ना शुरू कर दिया था।
5/5/93
गर्मी की छुट्टी में हम नानी के घर जा रहे है। खूब मस्ती करेंगे। बंगलोर से रांची का सफर तीन दिन का होता है। हम ने हटिया-यशवंतपुर में सेकंड क्लास का टिकट लिया है। 7 मई को हम नानी के घर पर होंगे। नानी के घर में जो बात मुझे सबसे अच्छी लगती है वह है आँगन और घर के पीछे वाला बगीचा।
26/6/93
नहीं, मुझे नहीं जाना चाहिए था यहाँ। ट्रेन में भी सामने बैठे अंकल बार-बार मेरी छाती को घूर रहे थे। माँ-पापा दोनों ने ये बात नोटिस की पर, कोई कुछ नहीं बोला। और फिर उस दिन रात को खाने पर मामा जी के फ्रेंड विकास मामा आये थे। खाने के बाद हम सब बैठ कर अंतराक्षी खेल रहे थे और बीच में ही लाइट चली गयी। अचानक विकास मामा का हाथ मेरी जांघो पर आगया। मैं डर गयी पर मुँह से आवाज़ नहीं निकल पायी। लालटेन लेकर आ रही थी।मैं जल्दी से उठने लगी तो उन्हों ने मुझे "मेरी गुड़िया कहाँ जा रही है" कह कर अपनी गोद में बैठा लिया और फिर.... नहीं मैं नहीं बाता सकती किसी को....मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। मेरी आँखों से आंसू बहने लगे। मैं आहिस्ता -आहिस्ता अपने वर्तमान को छोड़ अपने अतीत में जा रही थी. .मैंने कई पेज एक साथ पलट दिए।
5/9/94
शिक्षक -दिवस के मौके पर मैं और मेरी सहेलियों ने ग्रुप डांस किया था। लंहगा-चुनी में मैं बहुत सुन्दर दिख रही थी। राहुल मेरे पास आकर बोला-" यू आर लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल"। मैं तो शर्मा ही गई थी।
14/2/95
मुझे पता था कि राहुल मुझे प्रोपोज़ करेगा। उसने स्कूल गेट पर ही मेरा रास्ता रोक दिया और फिर बिना वक़्त बर्बाद किये उसने जल्दी से बोल दिया- "लम्हा,आई लव यू।" मैंने कुछ नहीं बोला। बस उसके साथ अपनी क्लास रूम की तरफ चल दी। हमें एक साथ आता देख अमित ने कहा- "भाभी आगयी..." और फिर सब हंसने लगे। मेरा जवाब जाने बिना ही क्लास ने कंफ़र्म कर दिया कि मैं राहुल की गर्लफ्रेंड हूँ। मैं क्यों उसी वक़्त उसे मना नहीं कर पाई ? शायद मैं बात बढ़ाना नहीं चाहती थी...पता नहीं।
16/3/95
परीक्षा शुरू होने वाली है। अब मुझे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना है। मैंने अभी तक राहुल को कुछ नहीं बोला है और मुझे कुछ बोलना भी नहीं है। मेरे बोले बिना ही सब ने तय कर दिया है। पर, "आई डोंट लव राहुल" ये बात पक्की है। खैर अगले साल 10वीं की परीक्षा है सो मेरे लिए तो "नो टाइम फॉर लव"।
1/5/95
10th क्लास का पहला दिन और आज सुबह ही मेरा पीरियड्स आ गया। क्लास मिस नहीं कर सकती थी इसलिए गयी और वही हुआ जिसका डर था। ब्लू स्कॉर्ट पर लाल दाग जो भूर रंग जैसा लग रहा था। हे भगवन! कितनी शर्म आर ही थी मुझे। पता नहीं कैसे और कहाँ से अचानक राहुल मेरे कानों के पास आकर बोला - "लॉन्ग लास्टिंग यूज़ करती तो ऐसा नहीं होता"। फिर वह अपने दोस्तों के साथ हँसता रहा। मैं उस वक़्त जोर-जोर से रोना चाहती थी। भगवान से मना रही थी कि की ये धरती फट जाये और मैं उस मे समा जायूँ। पर, ऐसा कुछ नहीं हो रहा था। सो, मैं धीरे से उठी और सुषमा मैडम को अपनी परेशानी बता कर घर जाने की इजाजत मांग ली। राहुल की हँसी अब मुझे हर महीने याद आएगी।
मैं इसके आगे का नहीं पढ़ पाई। खुद की लिखी डायरी को मैंने फाड़ डाला। अंदर का गुस्सा, घुटन सब चीत्कार के साथ बाहर निकल रहा था। इतने साल मैं जिस पल से आँखे चुराते आई आज वह पल मेरे सामने फिर से ज़िंदा होगया था। खुद पर मुझे आज बहुत गुस्सा आ रहा था। गुस्से में अपने को थपड मारा, यहाँ तक की अपना सिर भी दीवाल पे मारा। खुद को दीवाल पर इतनी जोर से धकेला था की चक्कर आगया। अपने आप को समेटती हुई बिस्तर पर बैठी तो लौट आयी अपने वर्तमान में। 1993 को बीते 24 साल होगे है। 2017 में मैं पत्नी हूँ। 13साल की बेटी की माँ हूँ। मैं सधाहरण- सी घरेलु औरत हूँ। बजट-सत्र नहीं समझ आता मुझे। राजनीति भी नहीं जानती। अगर जानती हूँ तो इस बढ़ती महगांई में अपनी गृहस्थी चलाना।
घर की सफाई में मिली मेरी बचपन की डायरी ने मुझे एक बात याद दिला दी है कि जो गलती मेरे मम्मी-पापा ने की थी और जो मुझ से भी हुई है वह गलती मैं अपनी बेटी के साथ नहीं दुहरायुगी। मेरी माँ ने अंकल की गन्दी नज़र को अनदेखा किया क्योकि वह बेवजह तमाशा नहीं बनाना चाहती थी। मैं मामा की उस गन्दी हरकत वाली बात किसी को नहीं पता पाई। क्योकि मैं तमाशा नहीं बना चाहती थी। राहुल के प्रपोजल को रिजेक्ट नहीं कर पायी क्योकि मैं बेवहज का तमाशा नहीं चाहती थी।
मैंने उस हर बड़ी बात को "बेवजह" बना दियाथा। तमाशा न बने इस डर से मैं जिंदिगी भर अंदर ही अंदर घुटती रही। ये सब मैं अपनी बेटी के साथ नहीं होने दे सकती। मैं अपनी सोच में डूबी हुई थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी। देखा तो पलक के स्कूल से फ़ोन था। अचानक स्कूल से फ़ोन देख मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने फ़ोन उठा कर हेलो बोला। सामने से प्रिंसिपल सर बोले -" मैडम आप अभी मेरे ऑफिस आ जाए। एक जरुरी बात करनी है। "
"क्यों क्या हुआ सर? पलक ठीक तो है न?" मैंने घबराकर पूछा।
प्रिंसिपल सर सख्त आवाज़ में बोले-"आप कितनी देर में यहाँ पहुँच सकती है?"
"मुझ ३०-३५ मिनट लग जाये गए।" मैंने उसी घबराहट में जवाब दिया।
"ठीक है" कह कर प्रिंसिपल सर ने फ़ोन कट कर दिया।
एक हाथ से मैं डायरी के फटे पन्नों को समेट रही थी और दूसरे से अविनाश का नंबर लग रही थी।
"हेलो, सुनो जी, पलक के स्कूल से फ़ोन आया था। मुझे बुलाया है। मैं रेडी हो कर स्कूल पहुँचती हूँ आप भी हो सके तो आजाओ "।
"अरे यार लम्हा! प्लीज ये सब तुम देख लो। मैं अभी नहीं आ सकता। तुम रेडी हो जाओ मैं ola या uber कर देता हूँ। और अगर कुछ हो तो बताना। बाय "। अविनाश से बहस करना बेकार है सो मैंने डस्टबिन में सारे कागज डाले और जल्दी से कपडे बदलने लगी। उबेर आगयी थी। मैंने पर्स उठाया और कंघी हाथ में लेकर दरवाजा लॉक कर कार में बैठ गयी। ड्राइवर ने जर्नी स्टार्ट करने के लिए कोड माँगा। मैंने अपने मोबाइल में मैसेज चेक किया और उसे कोड बता दिया। मैंने पूछा- "अड्रेस पता है?"
ड्राइवर ने बोला -"जी,पता है। अभी ट्रैफिक कम होगा इसलिए २५-३० में पहुंच जायगे"।
कार चल रही थी और मेरे मन में ढेरों आधे-अधूरे बुरे ख्याल आ-जा रहे थे। डायरी के पीले पन्ने अब भी दिमाग पर छाए हुए है। कार स्कूल गेट पर रुकी। मैंने पूछा -" कितना हुआ?"
ड्राइवर ने बोला -" मैडम पेमेंट हो चूका है।" अविनाश ने ऑनलाइन पेमेंट कर दिया था। मैं जल्दी से प्रिंसिपल की ऑफिस की तरफ लपकी। ऑफिस गेट पर चपरासी ने मुझे रोका।
"मैं पलक की मम्मी।प्रिंसिपल सर ने बुलाया है।"
चपरासी हँसते हुए बोला -" जाइए।अंदर सब आपका ही इंतज़ार कर रहे है। "
चपरासी की हंसी में मुझे राहुल की हंसी सुनाई दे रही थी। करंट-सा दौड़ गया मेरे पूरे शरीर में। आपने आप को संभालते हुए मैंने दरवाजा खोला तो देखा दरवाजे के बाई ओर पलक अकेली खड़ी सुबक रही है। पलक के ही उम्र का लड़का जो शायद उसकी ही क्लास में पढता है अपने अभिभावक के पास खड़ा है।
प्रिंसिपल सर मुझे देखते ही बोले - "मैडम ये सब मेरे स्कूल में नहीं चलता। आप अपनी बेटी को समझा दे।"
"सर, प्लीज मुझे बताये की हुआ क्या है?" मैंने विनर्मता से पूछा। पलक दौड़ कर मेरे गले लग कर रोने लगी। मेरा गाला भी भर आया। फिर मैंने धीरे से उसके कान में कहा- "dont worry palak". मैं हूँ तुम्हारे साथ। "
लड़के का नाम राज है और वह अपनी मम्मी से एकदम सट कर खड़ा है। राज की मम्मी ने एक दम से तीखी आवाज़ में बोलना शुरू किया- "एक तो आपकी बेटी इतना टाईट कुर्ता पहनती है। ऊपर से अपनी ब्रा ....." वह बोलते-बोलते रुक गयी। मैं एकटक उन्हें देखे जा रही थी। इस बार राज के पापा बोले -"अब दिखेगा तो लड़के क्या करेंगे?"
मैं ने बीच में ही पूछा-"क्या दिखेगा? आप साफ़-साफ़ बोलिये। "
मेरी ऊंची आवाज़ सुन कर राज के पापा तो चुप हो गए पर, उसकी मम्मी ने बोलना शुरू कर दिया- " ब्रा की बैल्ट दिखा रही थी आपकी लड़की। मेरे बेटे ने तो बस टच कर उसको....." उनकी बात आगे सुने बिना ही मैंने राज को पूरी ताकत से अपनी ओर खींचा और जोर का तमाचा उसकी गाल पर मारा। मेरी इस हरकत की उम्मीद वहाँ मौजूद किसी भी शख्स को नहीं थी। खुद मुझे भी नहीं थी। प्रिंसिपल सर अपनी कुर्सी से उठते हुए बोले- "मैडम आपने ये गलत किया है। गलती आपकी लड़की की है.."
मैं बीच में ही उनकी बात को काटते हुए बोली-"गलती?कैसी गलती सर? ब्रा की स्ट्रिप अगर दिखेगी तो राह चलते लड़को को लॉइसेन्स मिल जाता है छूने का? और "टाइट कुर्ता " क्या होता है? इनके ब्लाउज से ज्यादा टाइट और डीप कुर्ता है क्या पलक का?"
मैंने पलक को कंधे से पकड़ा और जोर से हिलाते हुए पूछा- " पलक जब राज ने तुझे छुआ तो तूने कंप्लेन क्यों किया? उसी वक़्त उसका हाथ क्यों नहीं तोड़ दिया?"
पलक अपनी सिसकी रूकते हुए बोली -"मैंने भी थप्पड़ मारा था मम्मी। इसलिए तो आपको यहाँ बुलाया है।"
उसका जवाब सुन मैं अपनी हँसी नहीं रोक पायी। मैं खिलखिला कर हंस हैं पड़ी और जोर से अपनी बेटी को,अपनी बहादुर बेटी को अपने गले से लगा लिया। नब्बे दशक की लम्हा को इक्सिवि सदी की पलक ने बचा लिया था। पिछली पीढ़ी की माँ तमाशा न बने इस लिए चुप थी। इस पीढ़ी की माँ ने साबित कर दिया था की कि कभी-कभी तमाशा बनना चाहिए ताकि मिसाल बन सको।